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Gaurav verma

Friday, July 29, 2005

Rajmachi Photos











Monday, July 25, 2005

तनहाई

महज कल्पना को ही कागज पर उतार दूँ तो क्या होगा,
तुझे जीवन में लाना और तनहाई को निकालना चाहता हुँ,
पर गम तो इसी बात का है,
कि तुम तनहाई और सिर्फ तनहाई में आती हो ...

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Saturday, July 23, 2005

आज दिल उदास है ..

उदासी है आज दिल में मेरे,
आज फिर दिल में तेरी याद सी है,..
तेरी यादें तो पहले भी थी साथ मेरे,
पर आज वो भी गमगीन सी है,..
यूँ तो पहले भी थे गम साथ मेरे,
पर आज गमों को भी गमी सी है,..

सही कहा है किसी ने,
पहले तो किसी से प्यार ना करो,
करो तो कभी उसका इजहार ना करो,
गर इजहार भी कर दो तो,
करते हो तुम उससे प्यार िकतना ये उसे गुमाँ ना होने दो,..

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Wednesday, July 20, 2005

Vihar Lake Pictures















Tuesday, July 05, 2005

अपने होठों पे सजाना चाहता हूं...

अपने होठों पे सजाना चाहता हूं
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूं

कोई आंसू तेरे दामन पर गिराकर
बूंद को मोती बनाना चाहता हूं

थक गया मैं करते-करते याद तुझको
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूं

छा रहा है सारी बस्ती में अंधेरा
रौशनी हो घर जलाना चाहता हूं

आख़री हिचकी तेरे ज़ानों पे आए
मौत भी मैं शायराना चाहता हूं

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किया है प्यार जिसे हमने ज़िन्दगी की तरह
वो आशना भी मिला हमसे अजनबी की तरह

बढ़ा के प्यास मेरी उस ने हाथ छोड़ दिया
वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल्लगी की तरह

किसे ख़बर थी बढ़ेगी कुछ और तारीकी
छुपेगा वो किसी बदली में चांदनी की तरह

कभी न सोचा था हमने ‘क़तील’ उस के लिए
करेगा हम पे सितम वो भी हर किसी की तरह

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मिलकर जुदा हुए तो न सोया करेंगे हम
एक दूसरे की याद में रोया करेंगे हम

आंसू छलक छलक के सताएंगे रात भर
मोती पलक पलक में पिरोया करेंगे हम

जब दूरियों की आग दिलों को जलाएगी
जिस्मों को चांदनी में भिगोया करेंगे हम

गर दे गया दगा़ हमें तूफ़ान भी ‘क़तील’
साहिल पे कश्तियों को डूबोया करेंगे हम

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सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूं मैं
लेकिन ये सोचता हूं कि अब तेरा क्या हूं मैं

बिखरा पड़ा है तेरे ही घर में तेरा वजूद
बेकार महिफ़लों में तुझे ढूंढता हूं मैं

मैं ख़ुदकशी के जुर्म का करता हूं ऐतराफ़
अपने बदन की क़ब्र में कबसे गड़ा हूं मैं

किस-किसका नाम लूं ज़बां पर कि तेरे साथ
हर रोज़ एक शख्स़ नया देखता हूं मैं

ना जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है के सब कुछ तेरा हूं मैं

ले मेरे तजुर्बों से सबक ऐ मेरे रक़ीब
दो चार साल उम्र में तुझसे बड़ा हूं मैं

जागा हुआ ज़मीर वो आईना है ‘क़तील’
सोने से पहले रोज़ जिसे देखता हूं मैं

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तुम पूछो और मैं न बताऊं ऐसे तो हालात नहीं
एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं

किस को ख़बर थी सांवले बादल बिन बरसे उड़ जाते हैं
सावन आया लेकिन अपनी क़िस्मत में बरसात नहीं

माना जीवन में औरत एक बार मोहब्बत करती है
लेकिन मुझको ये तो बता दे क्या तू औरत ज़ात नहीं

ख़त्म हुआ मेरा अफ़साना अब ये आंसू पोंछ भी लो
जिस में कोई तारा चमके आज की रात वो रात नहीं

मेरे गम़गीं होने पर अहबाब हैं यों हैरान ‘क़तील’
जैसे मैं पत्थर हूं मेरे सीने में जज्बात नहीं

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वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे
मैं तुझ को भूल के ज़िन्दा रहूं ख़ुदा न करे

रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िन्दगी बनकर
ये और बात मेरी ज़िन्दगी वफ़ा न करे

ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में
ख़ुदा किसी से किसी को मगर जुदा न करे

सुना है उसको मोहब्बत दुआएं देती है
जो दिल पे चोट तो खाए मगर गिला न करे

ज़माना देख चुका है परख चुका है उसे
‘क़तील’ जान से जाए पर इल्तजा न करे


जनाब कतील शिफाई

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हम तो हैं परदेस में…..

हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चांद
अपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चांद
जिन आंखों में काजल बन कर तैरी काली रात हो
उन आंखों में आंसू का एक कतरा होगा चांद
रात ने ऐसा पेच लगाया टूटी हाथ से डोर हो
आंगन वाले नीम में जाकर अटका होगा चांद
चांद बिना हर दिन यूं बीता जैसे युग बीतें हो
मेरे बिना किस हाल में होगा, कैसा होगा चांद

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दिल मे उजले काग़ज पर हम कैसा गीत लिखें
बोलो तुम को गैर लिखें या अपना मीत लिखें
नीले अम्बर की अंगनाई में तारों के फूल
मेरे प्यासे होंठों पर हैं अंगारों के फूल
इन फूलों को आख़िर अपनी हार या जीत लिखें
कोई पुराना सपना दे दो और कुछ मीठे बोल
लेकर हम निकले हैं अपनी आंखों के कश-कोल
हम बंजारे प्रीत के मारे क्या संगीत लिखें
शाम खड़ी है एक चमेली के प्याले में शबनम
जमुना जी की उंगली पकड़े खेल रहा है मधुबन
ऐसे में गंगा जल से राधा की प्रीत लिखें

-डा.राही मासूम रजा

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कल चौदहवीं की रात थी….

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा
कुछ ने कहा ये चांद है कुछ ने कहा चेहरा तेरा

हम भी वहीं मौजूद थे हम से भी सब पूछा किए
हम हंस दिए हम चुप रहे मंज़ूर था पर्दा तेरा

इस शहर में किस से मिलें हम से तो छूटी महफ़िलें
हर शख्स़ तेरा नाम ले हर शख्स़ दीवाना तेरा

कूचे को तेरे छोड़ कर जोगी ही बन जाएं मगर
जंगल तेरे पर्बत तेरे बस्ती तेरी सहरा तेरा

तू बेवफ़ा तू मेहरबां हम और तुझ से बद-गुमां
हम ने तो पूछा था ज़रा ये वक़्त क्यूं ठहरा तेरा

हम पर ये सख्त़ी की नज़र हम हैं फ़क़ीर-ए-रहगुज़र
रस्ता कभी रोका तेरा दामन कभी थामा तेरा

दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तेरी अक्राम का दरिया तेरा

हां हां तेरी सूरत हंसी लेकिन तू ऐसा भी नहीं
इस शख्स़ के अशार से शोहरा हुआ क्या क्या तेरा

बेशक उसी का दोश है कहता नहीं ख़ामोश है
तू आप कर ऐसी दवा बीमार हो अच्छा तेरा

बेदर्द सुननी हो तो चल कहता है क्या अच्छी ग़जल
आशिक़ तेरा स्र्स्वा तेरा शायर तेरा ‘इन्शा’ तेरा
-इब्ने इन्शा

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सच ये है बेकार हमें गम़ होता है…

सच ये है बेकार हमें गम़ होता है
जो चाहा था दुनिया में कम होता है

ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम
हमसे पूछो कैसा आलम होता है

गैरों को कब फ़ुर्सत है दुख देने की
जब होता है कोई हम-दम होता है

ज़ख्म़ तो हम ने इन आंखों से देखे हैं
लोगों से सुनते हैं मरहम होता है

ज़हन की शाख़ों पर अशआर आ जाते हैं
जब तेरी यादों का मौसम होता है
-जावेद अख्तर

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ज़ख्म़ जो आप की इनायत है..

ज़ख्म़ जो आप की इनायत है इस निशानी को क्या नाम दें हम
प्यार दीवार बन के रह गया है इस कहानी को क्या नाम दें हम
आप इल्ज़ाम धर गए हम पर एक एहसान कर गए हम पर
आप की ये मेहरबानी है मेहरबानी को क्या नाम दें हम
आप को यूं ही ज़िन्दगी समझा धूप को हमने चांदनी समझा
भूल ही भूल जिस की आदत है इक जवानी को क्या नाम दें हम
रात सपना बहार का देखा दिन हुआ तो गु़बार सा देखा
बेवफ़ा वक़्त बेज़ुबां निकला बेज़ुबानी को क्या नाम दें हम

-सुदर्शन फाकिर

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चलो बांट लेते हैं अपनी सज़ाए...

चलो बांट लेते हैं अपनी सज़ाएं
ना तुम याद आओ ना हम याद आएं
सभी ने लगाया है चेहरे पे चेहरा
किसे याद रखें किसे भूल जाएं
उन्हें क्या ख़बर हो आनेवाला ना आया
बरसती रहीं रात भर ये घटाएं
-सरदार अन्जुम

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चांद मद्धम है आस्मां चुप है …

चांद मद्धम है आस्मां चुप है
नींद की गोद में जहां चुप है

दूर वादी में दूधिया बादल,झुक के परबत को प्यार करते हैं
दिल में नाकाम हसरतें लेकर,हम तेरा इंतज़ार करते हैं

इन बहारों के साए में आ जा,फिर मोहब्बत जवां रहे न रहे
ज़िन्दगी तेरे ना-मुरादों पर,कल तलक मेहरबां रहे न रहे

रोज़ की तरह आज भी तारे,सुबह की गर्द में न खो जाएं
आ तेरे गम़ में जागती आंखें,कम से कम एक रात सो जाएं

चांद मद्धम है आस्मां चुप है
नींद की गोद में जहां चुप है
-साहिर लुधियानवी

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बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
लोग बेवजह उदासी का सबब पूछेंगे
ये भी पूछेंगे कि तुम इतनी परेशां क्यूं हो
उगलियां उठेंगी सुखे हुए बालों की तरफ’
इक नज़र देखेंगे गुज़रे हुए सालों की तरफ’
चूड़ियों पर भी कई तन्ज़ किये जायेंगे
कांपते हाथों पे भी फि’करे कसे जायेंगे
लोग ज़ालिम हैं हर इक बात का ताना देंगे
बातों बातों मे मेरा ज़िक्र भी ले आयेंगे
उनकी बातों का ज़रा सा भी असर मत लेना
वर्ना चेहरे के तासुर से समझ जायेंगे
चाहे कुछ भी हो सवालात न करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात न करना उनसे
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी‍
-कफ़ील आज़र

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मैं ख़याल हूं किसी और का,…

मैं ख़याल हूं किसी और का, मुझे सोचता कोई और है
सर-ए-आईना मेरा अक्स है, पस-ए-आईना कोई और है
मैं किसी के दस्त-ए-तलब में हूं, तो किसी के हऱ्फ-ए-दुआ में हूं
मैं नसीब हूं किसी और का, मुझे मांगता कोई और है
कभी लौट आएं तो न पूछना, सिऱ्फ देखना बड़े गौ़र से
जिन्हें रास्ते में ख़बर हुई कि ये रास्ता कोई और है
अजब ऐतबार-ब-ऐतबारी के दर्मियां है ज़िन्दगी
मैं करीब हूं किसी और के, मुझे जानता कोई और है
वही मुंसिफ़ों की रिवायतें, वही फ़ैसलों की इबारतें
मेरा जुर्म तो कोई और था, पर मेरी सज़ा कोई और है
तेरी रौशनी मेरी ख़ा ो-ख़ाल से मुख्त़लिफ़ तो नहीं मगर
तू क़रीब आ तुझे देख लूं, तू वही है या कोई और है

-सलीम कौसर

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देख लो ख्व़ाब मगर….

देख लो ख्व़ाब मगर ख्व़ाब का चर्चा न करो,
लोग जल जायेंगे सूरज की तमन्ना न करो
वक़्त का क्या है किसी पर भी बदल सकता है,
हो सको तुम से तो तुम मुझ पे भरोसा न करो
किर्चियां टूटे हुए अक्स की चुभ जायेंगी,
और कुछ रोज़ अभी आईना देखा न करो
अजनबी लगने लगे खुद तुम्हें अपना ही वजूद,
अपने दिन रात को इतना भी अकेला न करो
ख्व़ाब बच्चों के खिलौनों की तरह होते हैं,
ख्व़ाब देखा न करो ख्व़ाब दिखाया न करो
बेख्याली में कभी उंगलिया जल जायेंगी,
राख गुज़रे हुए लम्हों की कुरेदा न करो
मोम के रिश्ते हैं गर्मी से पिघल जायेंगे,
धूप के शहर में ‘आज़र’ ये तमाशा न करो

-कफ़ील आज़र

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Sunday, July 03, 2005

Fear ...

जमाने से नही हम तो तन्हाई से डरते हैं,
मोहब्ब्त से नहीं हम तो रुसवाई से डरते हैं
मिलने कि तमन्ना तो बहुत है इस दिल में
पर मिलने के बाद तेरी जुदाई से डरते हैं.

तुमसे बातें करते करते वक्त का पता ही न चला,
वरना वक्त हमारा कम्बखत काटे नही कटता...

इक शाम आती है तेरी याद ले कर,
इक शाम जाती है तेरी याद ले कर,
हमें तो उस शाम का इंतजार है,
जो आये तुम्हे साथ ले कर !

इक तो तेरी आवाज याद आयेगी...
तेरी कही हुई हर बात याद आयेगी...
दिन ढल जायेगा, रात याद आयेगी...
हर लम्हा पहली मुलाकात याद आयेगी...
कभी हँसती कभी रोती भी मुस्कुराती...
ये जिंदगी तेरे बिन भी कट जायेगी...
पर कुछ कमी इसमें भी तो रह जायेगी...
दिल को तडपायेगी कभी तरसायेगी..
हर लम्हा तेरी याद आ जायेगी..

हर लम्हा हर घडी तुझ को याद किया,
हम ने बात बेबात तुझको याद किया
नींद नाराज रही हमसे रात भर...
जिस रात हमने तुझे याद किया

काश हमारी दुआ में इतना असर हो जाये,
हम उन्हे याद करें और उन्हे खबर हो जाये...

रात के अंधेरे में जब लहराई जुल्फें आप की,
तो यूँ लगा मानो चाँद भी शरमा रहा हो,
शरमाता हुआ जैसे,...
शरमाता हुआ जैसे,...
तुम्हारी जुल्फों के पीछे छुपा जा रहा हो....

चाँद को देखे तो तेरा चेहरा नजर आये,
फिर क्यूँ चाहेगें हम कि ये चाँद डूब जाये...

सितारों कि नुमाईश में खलल पडता है,
चाँद तो पागल है,...जो रोज़ निकल पडता है,
ऐ दिल जरा धीरे धडक...
ऐ दिल जरा धीरे धडक...
धडकन से भी उनकी यादों में खलल पडता है...

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काश ...

काश तुम्हारी चाहत इतनी बेअसर होती,
कि इस कदर तुम्हारी आदत ना होती ।
दिल में इतने तूफ़ान ऊठ रहे हैं,
तुम क्या जानो हम क्या से क्या हो गये हैं
बस तसल्ली है कि तुम वहाँ खुश हो,
वरना यहाँ तो हवा भी गमगीन है
क्यों आये तुम इतना पास कि,
लगे है बरबाद तुम्हारे जाने के बाद सब
तुम्हे पता भी नही कि,
हमारे साथ क्या हो रहा है
कल तुम्हे कितना याद किया,...
याद करते करते आँख भर आयी

जब कल शाम निकले यूँ ही टहलने को,
मुस्कुरये बेवजह...यूँ ही जी बहलाने को,
जहाँ देखा तुम्हारा चेहरा नज़र आया
पलट पलट कर देखा कि शायद कहीं तुम हो,..
देखो तो ! कैसी हालत कर दी है तुमने..
आखिर तुम्हारा क्या बिगाडा था हमने...
क्यों आये तुम जिंदगी में तब,
जब छोड थी हमने हर उम्मीद अपनी जिंदगी से..
नहीं जानते तुम,कितना दर्द छुपा है भीतर हमारे,
जानोगे भी कैसे,..कभी इतना मौका ना दिया इस बेरहम वक्त ने,..
काश तुम्हारी चाहत इतनी बेअसर होती,
कि इस कदर तुम्हारी आदत ना होती ।

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Saturday, July 02, 2005

You can not be compared with others...

आसमान के सारे तारो को जोड भी दूँ पर चाँद तैयार नही होगा,
दुनिया में आखिर तुझ जैसा और कोई कहाँ होगा...

सच्ची मोहब्बत इंसान को कितना बदल देती है,
जिंदगी का मतलब और जिंदगी का सबब सिखा देती है,
देखो ना ! तुम्हारी मोहब्बत में हम कितना बदल गये,
तुम्हे याद करते करते इतनी नज्में हम लिख गये ....

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Friday, July 01, 2005

A request to God...

ऎ खुदा तू किसी से प्यार मत करना,...
हम तो मर कर तेरे पास आते है,तू कहाँ जायेगा..

खुदा से क्या शिकवा करे , वो तो खैर मुसलमान था
हमारे तो भगवान से कुछ किये न हुआ...

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