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Gaurav verma

Wednesday, July 12, 2006

लम्हे ले कर आये हैं,.

तुम्हारे अश्क की बूँद में हम नहा के आये हैं,
मुशिकल से पाई जिदंगी हम जी भर जी के आये हैं,
जैसे सरकती है धूप आँगन की दिवारों से,
हर गम जिदंगी के हम भुला के आये हैं,
इम्तहाँ मत लेना तुम हमारी पाक मोहब्बत का,
बेकरार करते थे जो वो लम्हे ले कर आये हैं ।

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