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Gaurav verma

Wednesday, July 12, 2006

फ़ना

ऐ खुदा आज ये फ़ैसला कर दे,
उसे मेरा या मुझे उसका कर दे,
बहुत दुख सहे हैं मैनें,
कोई खुशी अब तो मुक्कदर कर दे,
बहुत मुशकिल लगता है उससे दूर रहना,
जुदाई के इस सफ़र को कम कर दे,
जितना दूर चले गये है वो मुझसे,
उसे उतना करीब कर दे,
नही लिखा अगर मेरे नसीब में उसका नाम,
तो खत्म कर ये जिन्दगी और मुझे फ़ना कर दे ।

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खुदा को हमने देखा नहीं,तू ही सदा हमारा रब था,
किसी और को कभी चाहा नही,तू ही हमारा सब था,
सुना है किसी को मुक्कमल जहाँ नहीं मिलता पर,
जरा कोई बताये हमें,हमने जहाँ सारा माँगा कब था

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हम तेरे दिल में रहेंगे इक याद बन कर,
तेरे लब पर खिलेंगे मुसकान बन कर,
कभी अपने से जुदा मत समझना,
हम तेरे साथ चलेंगे आसमाँ बन कर ।

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बहाने अगर और भी होते जिन्दगी के,
खुदा कसम हम तेरी आरज़ू ही छोड देते ।

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तेरी आशिकी में हम खुद को भूल गये हैं,
जाने कब से तन्हा ही जी रहे हैं,
अब तो याद नही कब बरसा था सावन,
अपने अश्कों में ही बारिश को ढूँढ रहे हैं ।

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खुदा शायद भूल गया है,कोई उसे बता दे ,..
कि ये शख्स उसने पत्थर का बनाया नही है ।

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