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Gaurav verma

Wednesday, July 12, 2006

आईने की तलाश..

लोग कहते है कि हम अच्छा लिखते हैं,
हम तो कोरे कागज मे आईना तलाशते हैं ।

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रफ़ता-रफ़ता हाथो से जिंदगी निकल रही है,
मानिंद जैसे मुठ्ठी से रेत सरक रही है ।

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जाने कितने चश्मे निकले दिल की दिवारें तोडकर,
और वो कहते है कि हम पत्थर दिल हो गये ।

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मै शायर तो नही पर कभी कभी पक्तियाँ बन ही जाती हैं,
कागज में तुम्हे ढूढंते ढूढंते कलम से वो लिख ही जाती हैं ।

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सोचा था कि तेरे हाँ या ना पर,
मेरी जिंदगी बदल जायेगी,
इतना इल्म ना था कि,
इस दुनिया के हाँ कि जरूरत भी आयेगी ।

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