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Gaurav verma

Sunday, July 03, 2005

काश ...

काश तुम्हारी चाहत इतनी बेअसर होती,
कि इस कदर तुम्हारी आदत ना होती ।
दिल में इतने तूफ़ान ऊठ रहे हैं,
तुम क्या जानो हम क्या से क्या हो गये हैं
बस तसल्ली है कि तुम वहाँ खुश हो,
वरना यहाँ तो हवा भी गमगीन है
क्यों आये तुम इतना पास कि,
लगे है बरबाद तुम्हारे जाने के बाद सब
तुम्हे पता भी नही कि,
हमारे साथ क्या हो रहा है
कल तुम्हे कितना याद किया,...
याद करते करते आँख भर आयी

जब कल शाम निकले यूँ ही टहलने को,
मुस्कुरये बेवजह...यूँ ही जी बहलाने को,
जहाँ देखा तुम्हारा चेहरा नज़र आया
पलट पलट कर देखा कि शायद कहीं तुम हो,..
देखो तो ! कैसी हालत कर दी है तुमने..
आखिर तुम्हारा क्या बिगाडा था हमने...
क्यों आये तुम जिंदगी में तब,
जब छोड थी हमने हर उम्मीद अपनी जिंदगी से..
नहीं जानते तुम,कितना दर्द छुपा है भीतर हमारे,
जानोगे भी कैसे,..कभी इतना मौका ना दिया इस बेरहम वक्त ने,..
काश तुम्हारी चाहत इतनी बेअसर होती,
कि इस कदर तुम्हारी आदत ना होती ।

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