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Gaurav verma

Tuesday, July 05, 2005

देख लो ख्व़ाब मगर….

देख लो ख्व़ाब मगर ख्व़ाब का चर्चा न करो,
लोग जल जायेंगे सूरज की तमन्ना न करो
वक़्त का क्या है किसी पर भी बदल सकता है,
हो सको तुम से तो तुम मुझ पे भरोसा न करो
किर्चियां टूटे हुए अक्स की चुभ जायेंगी,
और कुछ रोज़ अभी आईना देखा न करो
अजनबी लगने लगे खुद तुम्हें अपना ही वजूद,
अपने दिन रात को इतना भी अकेला न करो
ख्व़ाब बच्चों के खिलौनों की तरह होते हैं,
ख्व़ाब देखा न करो ख्व़ाब दिखाया न करो
बेख्याली में कभी उंगलिया जल जायेंगी,
राख गुज़रे हुए लम्हों की कुरेदा न करो
मोम के रिश्ते हैं गर्मी से पिघल जायेंगे,
धूप के शहर में ‘आज़र’ ये तमाशा न करो

-कफ़ील आज़र

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